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चार दिन ख़राब खाना खाया लेकिन हौसला नहीं हारा - श्रीकांत जाधव | प्रो कबड्डी स्टार श्रीकांत जाधव की प्रेरणादायक कहानी
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श्रीकांत से जब पूछा गया की उनकी कबड्डी की सुरवात कैसे हुवी तो उन्होंने बताया की वे पहले एथेलेटिक्स के खेल खेला करते थे लेकिन उन्हें जब पता चला की एथेलेटिक्स के मुकाबले कबड्डी में सर्टिफिकेट ज्यादा मिलते है तो उन्होंने एथेलेटिक्स छोड़ कबड्डी खेलना सुरु किया। कबड्डी का मैदान उनके घर के बगल में ही था।
उन्हें कबड्डी में कुछ एक बेहतर कबड्डी खिलाडी बनना था यही सपना लेके श्रीकांत ने गांव छोड़ा और अपना सपना पूरा करने मुंबई पोहच गए। मुंबई में श्रीकांत ने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (Sports Authority of india) में ज्वाइन कर लिया। वह उन्हें अच्छे सीनियर खिलाड़ियोंका मार्गदर्शन मिला रहा था और अच्छे से ट्रेनिंग मिल रही थी। श्रीकांत ने असली कबड्डी का मतलब वही सीखा। उसी वक्त स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने मियमोंमे कुछ बदलाव किये। नए नियम आने से श्रीकांत को वहा से निकाला गया और उन्हें वापस गांव लौटना पड़ा।
पढाई में श्रीकांत कमजोर थे और गांव लौटने के बाद उन्होने सोचा की अब कबड्डी में कुछ नहीं होगा। श्रीकांत ने फिर नौकरी ढूंढना सुरु किया क्यों की घर में कोई कमाने वाला नहीं था। उन्होंने पुलिस में भर्ती होना चाहा दो तीन बार भारतीय आर्मी में भी कोशिस की लेकिन उनका सिलेक्शन नहीं हो पाया।
श्रीकांत ने अपने संघर्ष के दिनों का एक किस्सा दर्शंकोंको बताया किस तरह उनके पास ना खाने को कुछ था ना पैसे थे।
में एक दिन गुस्से में घर छोड़ के अमरावती चला गया लेकिन मेरे पास सिर्फ पचास से सौ रूपये थे तो मैंने उन पैसो से चावल और बेसन खरीद लिया लेकिन जलाने के लिए कुछ नहीं था तो मैंने गद्दा जलाके खाना बनाया। लेकिन खाना दूसरे दिन ख़राब हो गया। वही खाना मैंने चार दिन खाया फिर चौथे दिन मेरे गांव से कुछ लोग आए थे कबड्डी देखने तो मैंने उस दिन अच्छा खाना खाया लेकिन मैंने प्रैक्टिस छोड़ी नहीं। ऐसा श्रीकांत ने बताया।
श्रीकांत फिर से कबड्डी के तरफ लौटे और उन्होंने अमरावती में एक टीम में खेलने लगे उस टीम में महाराष्ट्र के बड़े बड़े दादा अव्हाड जैसे खिलाडी खेलते थे। वहा से उन्हें विदर्भ फेडरेशनल से विदर्भ की टीम में नेशनल कबड्डी चैंपियनशिप खेलने का मौका मिला। नेशनल चैंपियनशिप के उनके अच्छे प्रदर्शन के कारन उन्हें भारतीय टीम के कैंप में जाने का मौका मिला।
भारतीय टीम के कैंप में होने के कारन उन्हें प्रो कबड्डी लीग की टीम जयपुर पिंक पैंथर्स ने उन्हें अपने टीम का हिस्सा बनाया। प्रो कबड्डी सुरु होने ने कुछ दिन ही बचे थे की तभी श्रीकांत चोटिल हो गए और डॉक्टर ने उन्हें सर्जरी करने को कहा। वहा से वे घर लौटे घर आये तो पैसे नहीं थे। श्रीकांत के पिताजी ने कुछ पैसे जमा किये और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया फिर कर्जा लेके श्रीकांत ने अपनी सर्जरी कराइ। ठीक होने के बाद श्रीकांत ने महिंद्रा एंड महिंद्रा में नौकरी पर जाने लगे। महिंद्रा एंड महिंद्रा की कबड्डी टीम से खेलते हुवे उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। फिर उनका सिलेक्शन प्रो कबड्डी के दूसरे टीम बंगाल वारियर्स में हुवा, लेकिन उन्हें वहा ज्यादा खेलने का मौका नहीं मिला। फिर उन्हें भारतीय रेलवे मैं नैकरी मिली।
जब श्रीकांत रेलवे में नौकरी करते थे तब भारतीय पूर्व खिलाडी इ. भास्करन ने एक कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन किया था। उस प्रतियोगिता में श्रीकांत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा था। उस वक्त भास्करन यु मुम्बा टीम के कोच थे तो उन्होंने श्रीकांत को प्रो कबड्डी के चौथे संस्करण के लिए यु मुम्बा टीम में शामिल किया। यु मुम्बा से खेलते हुवे उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा और वही से उन्हें एक पहचान मिली। उसके बाद प्रो कबड्डी का छटा और सातंवा संस्करण उन्होंने यूपी योद्धा से खेला और टीम में रिशांक देवाडिंग और मोनू गोयत जैसे अच्छे रेडर के होते हुए भी श्रीकांत में अपनी एक अलग पहचान बनाई और एक मुख्य रेडर की तरह का प्रदर्शन किया।
हम आशा करते है की श्रीकांत ऐसे ही आगे बढ़ते रहे और एक दिन देश के लिए गोल्ड मैडल जित के लाये।
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